Sunday, December 18, 2011

कल, आज और कल...

जी ले इस पल को तू आज खुलके
रख दे सिरहाने सपने वो बीते कल के
जो ये पल है, वो है बेहद खास
छिपी है इनमें एक सुन्हेरे कल की आस

जो पल बीता, वो बीत गया
जो आयेगा वो होगा एक कल नया
बीतें कल की यादों को तू भूल जा 
जो आज है तू उसे अपना

क्या होगा और क्या नहीं, तू इस सोच मैं न पड़
बढ़ा है जो हाथ तेरी और तू उसको पकड़
जो ज़ख़्म है तेरा वो भर जाएगा
जो ना भी भरा तो भी क्या, एक दोस्त तो तुझे मिल ही जाएगा...


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